जसवंतनगर/इटावा: कैला देवी मंदिर जसवंतनगर पर नव दुर्गा पूजा पर उमड़ा जन सैलाव।

 संवाददाता: एम.एस वर्मा,चीफ एडिटर, 6397329270

मनोज कुमार

जसवंत नगर(इटावा)। 1970 के दशक तक जसवंतनगर कस्बा में कोई ऐसा देवी मंदिर नहीं था, जहां श्रद्धालु देवी आराधना कर सकें, इस वजह से नवरात्रि के दिनों में जसवंतनगर कस्बा के लोग या तो ब्रह्माणी देवी अथवा धरबार की देवी मैया या इटावा की काली वाहन देवी मंदिर में जाकर देवी दर्शन और पूजा अर्चना करते थे। 

जसवंतनगर में अहीर टोला मोहल्ला में स्थित “शाला मंदिर” पर भी देवी का थान था, जहां लोग पूजा अर्चना करने जाते थे । नव विवाहित जोड़े सबसे पहले वही पूजा करके आशीर्वाद लेकर कंगन खोलते थे।और जीवन क़ी नई पारी क़ी शुरआत करते थे
वर्तमान में जसवंत नगर कस्बा में लोहा मंडी मोहल्ला में, जो भव्य त्रिगमा देवी मंदिर है, उसका अस्तित्व सन 1973- 74 के बाद ही आया।
मंदिर की जगह पर नीम का एक बड़ा पेड़ होता था। उस पेड़ की जड़ के पास जमीन पर कुछ बटिया टाइप पत्थर की मूर्तियां रखी रहती थी, जिनकी पूजा मोहल्ला की महिलाएं जल चढ़ाकर किया करती थीं। 
सन 1970 में भारतीय जीवन बीमा निगम में विकास अधिकारी के पद पर लाल बिहारी चतुर्वेदी को जसवंतनागर में तैनात किया गया।वह बड़े ही धार्मिक और भक्त टाइप के व्यक्ति थे। बीमा का काम करते थे। एक दिन उनके दिमाग में यह बात आई कि जसवंत नगर के प्राचीन मंदिरों का क्यों न जीर्णोद्धार कराया जाए।

उन्होंने एक-एक कर नगर के मंदिरों में यह काम पूरी लगन और निष्ठा से शुरू किया । बिजली, पंखा, लाइट तथा उनका जीर्णोद्धार कराना शुरू किया। एक दिन उन्होंने जब लोहा मंडी मोहल्ला में महिलाओं को नीम के पेड़ के नीचे रखी बटियों की पूजा करते देखा, तो उनके दिमाग में आया कि नीम के पेड़ के नीचे ही क्यों न एक देवी का भव्य स्थान बनवा दिया जाए।

    चूंकि यह पेड़ किसी मुस्लिम टेंट व्यवसाई की जगह में था , तो देवी का स्थान बनाने में अड़ंगा आ खड़ा हुआ। चौबे जी ने अपने मन की बात लोगों को बताई, तो कुछ हिंदूवादी स्थान को देवी के स्थान के रूप में विकसित करने पर रजामंद हो गये ।

      और हुआ यही एक रात जहां पर देवी की बटिया रखी हुई थी, वहां रातों-रात एक देवी की मूर्ति विराजित कर दी गई, जब यह बात नगर में फैली तो तनाव फैल गया।


  बाद में पुलिस और प्रशासन ने पेड़ के नीचे जहां मूर्ति रखी गई थी, उस पर यथा स्थिति बनाए रखने के दोनों समुदायों को निर्देश दिए। 

 मंदिर में स्थापित काली देवी

      धीरे-धीरे विराजित हुई देवी की महिमा बढ़ती गई और मूर्ति को एक ऊंचा स्थान बनाकर झोपड़ी में विराजित कर दिया गया। एक बौने कद के बाबा वहां निवास करने लगे और उन्होंने देवी पूजा आरंभ करा दी इसके साथ ही देवी श्रद्धालुओं का वहां आगमन शुरू हो गया पूजा अर्चना होने लगी।

      बाद में देवी स्थान को लेकर मुकदमे बाजी हुई और जसवंत नगर की रईस और पूर्व एमएलसी शांति देवी ने झोपड़ी के सामने की अपनी रियासत की जगह देवी स्थान के लिए दान दे दी। मगर पुजारी के रूप में काम कर रहे बौना बाबा ने उस स्थान पर एक भवन तो बनबा दिया ,मगर देवी जी की मूर्ति उस स्थान पर ही विराजित रही, जहां पेड़ के नीचे विराजित थीं ।

कई वर्षों तक मुकदमे बाजी हुई। फिर मुकदमे बाजी के दौरान दूसरे पक्ष ने सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए अपने हाथ खींच लिए और फिर उस जगह पर देवी मंदिर का बनना आरंभ हो गया। 

   इस देवी मंदिर के निर्माण में नगर की शंकर बारात समिति के तत्कालीन अध्यक्ष स्व भोलानाथ माथुर ने काफी रुचि दिखाई थी और आज जसवंत नगर इलाके का सबसे भव्य मंदिर केला त्रिगमा देवी मंदिर ही है।

       पेड़ के नीचे रातोंरात विराजित कराई गई देवी प्रतिमा आज भी मंदिर के मुख्य गर्भ ग्रह में है । साथ ही अनेक मूर्तियां भी मंदिर में विराजित हो गई है। इस वजह से देवी भक्तों का यहां आना-जाना रोजाना ही रहता है । नगर के बहुत से दुकानदार रोजाना देवी के दर्शन करके ही अपने प्रतिष्ठान खोलते हैं ।महिलाएं सुबह और शाम बड़ी संख्या में देवी की आरती के वख्त मौजूद रहती है। मंदिर में अक्सर कार्यक्रम चलते रहते हैं।


       मंदिर के संस्थापक पुजारी बौना बाबा के निधन के बाद मोहल्ले के ही एक किशोर श्रद्धालु लाला भैया ने मंदिर की व्यवस्था संभाली और उन्होंने ही मंदिर को भव्य बनवाने में बड़ा योगदान किया। कई वर्षों तक मंदिर की सेवा के बाद लाला भैया का पुजारी के रूप में स्वर्गवास हो गया। 

झंडा कैला देवी मंदिर

    अब मंदिर में लाला भैय्या के चेला चपाटे पूरी निष्ठां एवं श्रद्धाभाव ईमानदारी के साथ व्यवस्था संभालते हैं। नव रात्रियों में रोजाना मेले जैसा माहौल रहता है ।

हर वर्ष मंदिर को फूलों एवं रंग बिरंगी लाइटों से न केवल सजाया जाता है बल्कि 56 भोग लगाकर आदि माता त्रिगमा कैला देवी को प्रसन्न किया जाता है. सुबह शाम होने वाली आरती में भारी भीड़ जुटती है ।
झंडा घंटे चढ़ते हैं तथा विशाल भंडारा का भी आयोजन नौवीं के दिन होता है।जो पूरे दिन लगातार चलता रहता है. फिर भी प्रसाद खत्म होता ही नहीं है.
नियमित रूप से जाने वाले मंदिर के एक भक्त अजीत बाबा व रानू मास्टर ने बताया है कि केला त्रिगमादेवी का मंदिर इतना सिद्ध मंदिर है कि यहां हर एक की मनोकामनाएं पूरी होती हैं दर्शन करने वालों के दुख दूर हो जाते हैं।

व्यवस्था संभालने बाले ऋषि गुप्ता, अवनीश, पप्पू लाला, कल्लू बाबा, मोनू, बंटू, जितेंद्र, राजन वाजपेई, अभिनव, रोबिन, शानू, पवन, गोलू, ललित,विकास, संटी, गोविन्द, सौरभ, अभय, विष्णु,अनुज, रजत ठाकुर, सचिन, शिवम, आतम कश्यप आदि मुख्य रूप से और अनन्य भाव से मदिर क़ी सेवा करते है

   नगर की बहुत सी महिलाएं वर्ष भर केला त्रिगमा देवी के दर्शन करके ही अपनी दिन चर्या शुरू करती है.

बाइट मंदिर सेवदार